लड़की हूँ मैं।
- ANAMIKA
- Aug 3, 2016
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हर रोज़ जी कर मरती हूँ मैं ....
लड़की हूँ मैं।
माँ की लाड़ली ....
पिता की शान हूँ मैं....
लड़की हूँ मैं....
दुनिया की नज़रों में इज़्ज़त की पुतली हूँ मैं....
लड़की हूँ मैं।
वैसे तो पूजनीय देवी हूँ....
मगर इस समाज में हर पल बेइज़्ज़त होती मूरत हूँ मैं....
क्यूंकि लड़की हूँ मैं।
लड़कों के इस समाज में अकेले लड़ती हूँ मैं....
लड़की हूँ मैं।
अँधेरे में बाहर जाने से डरती हूँ मैं....
अपने सपनों को अपने लिंग से तोलकर बुनती हूँ मैं....
क्यूंकि लड़की हूँ मैं।
यूँ तो ये दुनिया हम सबकी है....
मगर फिर भी इसे अपना मानने से डरती हूँ मैं...
क्यूंकि लड़की हूँ मैं।
अपने स्वभाव से कम अपने कपड़ों से ज़्यादा तोली जाती हूँ मैं....
क्यूंकि लड़की हूँ मैं....
अँधेरे में माँ बाहर नहीं भेजती....
मगर माँ दिन के उजले में भी कहाँ सुरक्षित हूँ मैं?
आखिरकार लड़की हूँ मैं।
भगवान बस इतना चाहती हूँ मैं....
की अगले जनम जब इस दुनिया में आऊं....
तो हर रोज़ तुम से ये न पूछूं....
कि आखिर क्यों लड़की हूँ मैं?
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